अब बच्चों की बातें शोर
बड़ों की उलझन लगने लगीं हैं
दुनिया सिमट गयी है
घर से ऑफिस के बीच के रास्तों में
त्योहारों में लोगों का उल्लास
लगने लगा है बिना वजह का हो हल्ला
बारिशों में भीगने का वक़्त अब नहीं होता
न धुप का आनंद लेने का मन
सर्दी की ठिठुरन को ए सी की गर्मी मार चुकी है
जाने कब का
समझदार और जिम्मेदार होने की होड़ में
कब समझदारी और ज़िम्मेदारी
अपनी ज़िन्दगी के लिए
पीछे छूटी पता ही नहीं चला
ज़िन्दगी जीने के लिए
अपनी खीची सीमाएं
मार चुकीं हैं ज़िन्दगी को
पता चला
जब कंप्यूटर की स्क्रीन पे रंग बिरंगे
अक्षर बचे, शब्द नहीं बचे
कलम की स्याही
या
ज़िन्दगी के मायने
कुछ तो बदल गया है
तभी तो अब पन्नों पे दिल की बातें नहीं उतरतीं
कागज स्याह नहीं होते
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Beautifulllllll ... Amazinggggg :)
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