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Wednesday, April 20, 2011

neta ji se seekh liya.

हम तो रूठे हुए बैठे थे!
आकर,
फिर से हमें,
पता नहीं कैसे मना गये;
कुछ मिन्नतें कीं
गले लगाया,
और अपना बना गये|

लगा था,
कि शायद फिर धोखा होगा;
शायद फिर से,
शकल देखने को ना मिलेगी,
एक अरसे तक|
काफ़ी सम्हलकर बैठे भी थे;
फिर भी आख़िरकार उन्ही को अपने दिल से लगा गये...


नेता जी,
गये तो गये,
हमें एक बार फिर, मुहब्बत सिखा गये |

3 comments:

  1. वाह, इसी खूबी से आजतक नेताजी बने हुए हैं।

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About Me

मैं जिंदा हूँ, मगर ज़िंदगी नहीं हूँ; मुझपे मरने की ग़लती करना लाज़िम नहीं है|

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