हम तो रूठे हुए बैठे थे!
आकर,
फिर से हमें,
पता नहीं कैसे मना गये;
कुछ मिन्नतें कीं
गले लगाया,
और अपना बना गये|
लगा था,
कि शायद फिर धोखा होगा;
शायद फिर से,
शकल देखने को ना मिलेगी,
एक अरसे तक|
काफ़ी सम्हलकर बैठे भी थे;
फिर भी आख़िरकार उन्ही को अपने दिल से लगा गये...
नेता जी,
गये तो गये,
हमें एक बार फिर, मुहब्बत सिखा गये |
आकर,
फिर से हमें,
पता नहीं कैसे मना गये;
कुछ मिन्नतें कीं
गले लगाया,
और अपना बना गये|
लगा था,
कि शायद फिर धोखा होगा;
शायद फिर से,
शकल देखने को ना मिलेगी,
एक अरसे तक|
काफ़ी सम्हलकर बैठे भी थे;
फिर भी आख़िरकार उन्ही को अपने दिल से लगा गये...
नेता जी,
गये तो गये,
हमें एक बार फिर, मुहब्बत सिखा गये |
सुंदर व्यंग्य
ReplyDeletedhanyavad devendra ji
ReplyDeleteवाह, इसी खूबी से आजतक नेताजी बने हुए हैं।
ReplyDelete