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Tuesday, February 22, 2011

......

एक घर हिन्दू का
दूजा मुस्लमान का
अगल-बगल
सारी बस्ती ही जैसे यूँ ही बसी है|
फिर भी यहाँ दंगे नहीं होते!

क्योंकि इस बस्ती में बस किरायेदार रहते हैं|

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मैं जिंदा हूँ, मगर ज़िंदगी नहीं हूँ; मुझपे मरने की ग़लती करना लाज़िम नहीं है|

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