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Wednesday, September 12, 2012

ये आंधी के मौसम, दरख्तों के पत्ते।

ये आंधी के मौसम, दरख्तों के पत्ते।

बड़ी नटखट वो, बड़े ढीट हैं ये;
वो तेज तो हौंसलों से सराबोर हैं ये।
वो मचलती थिरकती, ये ठिठकते मटकते;
वो आंधी के मौसम, ये दरख्तों के पत्ते।

वो लगाती बहुत जोर इन्हें तोड़ने को;
बने रहते जब तक ये किस्मत को छलते।
लगी होड़ तब तक की जब तक ना गिरते;
वो आंधी के मौसम, ये दरख्तों के पत्ते।

लगी जैसे बाजी हो अब जीतने की;
वो जाती तो जाते हैं संग उसके पत्ते।
पता तो नहीं कौन जीता मगर ये
पता है भागते थे संग आंधी के पत्ते।
खबर उसकी अब तक मिली क्यों नहीं है?
ज़रा ढूंढ लाओ खबरची ये पत्ते।
वो आंधी के मौसम,ये दरख्तों के पत्ते।

टूटकर भी हौसला नहीं है ये तजते,
तभी तो हैं नश्वर, पर अमर भी हैं पत्ते।
जाकर के आती है, कई बार आंधी
तभी तो हैं आते, कई बार पत्ते। 
चली आती आंधी, चले जाते पत्ते;
चली जाती आंधी बने रहते पत्ते
ये आंधी के मौसम, दरख्तों के पत्ते।

Tuesday, September 4, 2012

kram Se shah

अक्षरशः
सत्य है
शब्दों का वो अनवरत क्रम
आज भी
जो सीखा था हमनें
कभी अनजाने मे
जन्म
रुदन
क्रीडा
सृजन 
प्रकोप
अभिमान
अहंकार
 द्वन्द
और
आभार! 

Wednesday, July 18, 2012

Bas Achha hai.

करके बे-आबरू मुझको कई दफे;
अगर बस एक-बार रुसवा हुए तो अच्छा है ।

क्या बयां करूं मैं हकीकत अपनी;
तुझे मालूम है "मैं हूँ", तो अच्छा है ।

ज़िन्दगी में इतने नजरानों के बाद;
किसी नज़र में ज़िन्दगी हो तो अच्छा है ।

मालूम नहीं पड़ती अब तो तबीयत अपनी;
"बस मशगूल है " अभी तो ये ख्याल अच्छा है ।


ग़म किसको की किसी ने अफ़सोस किया लब्जों में;
किसी लब्ज पे था मेरा नाम,बस अच्छा है। :-)

Monday, January 23, 2012

तुम देखोगे

वाह रे मेरे शेर!

माना,
की तुझमें कुछ सामर्थ्य है;
मगर जब भी,
धूल भरी सड़क पे मैंने,
बारिश को गिर कर,
धूल दबाते देखा है
मान लिया है मैंने
की युद्ध में
विजेता कोई भी हो सकता है--
सुदृढ़ कणों से जीततीं,
बारिश की तरल बूँदें।

देखा है मैंने
की कैसे वक़्त के आगे
मान ली है
बड़े बड़े पुराधाओं ने हार
और कैसे
वक़्त को रोकने का
कोई ना कर सका कभी
साहस...
तू तो बस इंसान है--
नश्वर, डरपोक, बंधक।

जब भी देखा है मैंने
शिशु, समर्थों को
कल्पनाशक्ति की उड़ान से उड़ते
दिल_
आज के युग में
उनकी चेतना के
व्यर्थ हो जाने के
उदहारण देकर
रुलाता है मुझे
वे शिशु, वे समर्थ--
तुझमें तो खोने के लिए भी
कुछ ढूंढना पड़ेगा।

आज एक बार फिर
मैं भयभीत हूँ 
देखकर_
न, न! सोचकर
की कैसे सम्हालेगा तू
इन परिस्थितियों को
जो दिन ब दिन
समर्थ होती जा रहीं हैं
और तू..
शायद कमजोर।

कैसे
चुपचाप कर सकता है कोई
धमाकों से भयंकर आवाज़
कोरी कल्पना लगती है मुझे ये
उन शिशुओं की.. उन समर्थों की

कैसे बिना युद्ध नीति लडेगा तू
वो रण
जिसका दिशा ज्ञान भी नहीं तुझे
बस तू मांग सकता है तो कुछ वक़्त
पर ये बता
की आज तक मिला है किसी को
वक़्त?

बता....
कैसे? बता?
________________________________________________

हम्म..
सुन ली मैंने तुम्हारी
बस अब कुछ न कहना।


तुम देखोगे।




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Thursday, November 10, 2011

दीपक की अभिलाषा

फलक तक अँधेरा तो क्या बात है,
अभी तो हैं रोशन किनारे कई;
खड़ा हूँ बुझे बिन, अकेला सही,
हैं रोशन नज़ारे तो क्या बात है|

टिका हूँ, सहारों की परवाह वगैर,
की अभी रुत जाने की आई नहीं;
जला हूँ तो जलकर ही पूरी करूँ,
सब हसरतें जो, तो क्या बात है|

कभी तेल, बाती, कभी है हवा,
अंधेरों से में पर खड़ा खेलता,
तमस ही मिटाऊँ, उजाला करूँ,
पर ना हों धमाके तो क्या बात है|

शरर हूँ, तो उठती है आग जब,
बदल जाते हैं नज़ारे कई,
जब भी लौ जले तो बदलाव हों,
हो बेहतर जो हर दर तो क्या बात है|
__

Monday, October 31, 2011

बदलाव...

अब बच्चों की बातें शोर
बड़ों की उलझन लगने लगीं हैं

दुनिया सिमट गयी है
घर से ऑफिस के बीच के रास्तों में

त्योहारों में लोगों का उल्लास
लगने लगा है बिना वजह का हो हल्ला

बारिशों में भीगने का वक़्त अब नहीं होता
न धुप का आनंद लेने का मन 
सर्दी की ठिठुरन को ए सी की गर्मी मार चुकी है
जाने कब का 

समझदार और जिम्मेदार होने की होड़ में
कब समझदारी और ज़िम्मेदारी 
अपनी ज़िन्दगी के लिए
पीछे छूटी पता ही नहीं चला

ज़िन्दगी जीने के लिए
अपनी खीची सीमाएं
मार  चुकीं हैं ज़िन्दगी को
पता चला
जब कंप्यूटर की स्क्रीन पे रंग बिरंगे
अक्षर बचे, शब्द नहीं बचे 

कलम की स्याही
या 
ज़िन्दगी के मायने
कुछ तो बदल गया है

तभी तो अब पन्नों पे दिल की बातें नहीं उतरतीं
कागज स्याह नहीं होते
__

Wednesday, April 20, 2011

neta ji se seekh liya.

हम तो रूठे हुए बैठे थे!
आकर,
फिर से हमें,
पता नहीं कैसे मना गये;
कुछ मिन्नतें कीं
गले लगाया,
और अपना बना गये|

लगा था,
कि शायद फिर धोखा होगा;
शायद फिर से,
शकल देखने को ना मिलेगी,
एक अरसे तक|
काफ़ी सम्हलकर बैठे भी थे;
फिर भी आख़िरकार उन्ही को अपने दिल से लगा गये...


नेता जी,
गये तो गये,
हमें एक बार फिर, मुहब्बत सिखा गये |

About Me

मैं जिंदा हूँ, मगर ज़िंदगी नहीं हूँ; मुझपे मरने की ग़लती करना लाज़िम नहीं है|

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