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Wednesday, September 12, 2012

ये आंधी के मौसम, दरख्तों के पत्ते।

ये आंधी के मौसम, दरख्तों के पत्ते।

बड़ी नटखट वो, बड़े ढीट हैं ये;
वो तेज तो हौंसलों से सराबोर हैं ये।
वो मचलती थिरकती, ये ठिठकते मटकते;
वो आंधी के मौसम, ये दरख्तों के पत्ते।

वो लगाती बहुत जोर इन्हें तोड़ने को;
बने रहते जब तक ये किस्मत को छलते।
लगी होड़ तब तक की जब तक ना गिरते;
वो आंधी के मौसम, ये दरख्तों के पत्ते।

लगी जैसे बाजी हो अब जीतने की;
वो जाती तो जाते हैं संग उसके पत्ते।
पता तो नहीं कौन जीता मगर ये
पता है भागते थे संग आंधी के पत्ते।
खबर उसकी अब तक मिली क्यों नहीं है?
ज़रा ढूंढ लाओ खबरची ये पत्ते।
वो आंधी के मौसम,ये दरख्तों के पत्ते।

टूटकर भी हौसला नहीं है ये तजते,
तभी तो हैं नश्वर, पर अमर भी हैं पत्ते।
जाकर के आती है, कई बार आंधी
तभी तो हैं आते, कई बार पत्ते। 
चली आती आंधी, चले जाते पत्ते;
चली जाती आंधी बने रहते पत्ते
ये आंधी के मौसम, दरख्तों के पत्ते।

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मैं जिंदा हूँ, मगर ज़िंदगी नहीं हूँ; मुझपे मरने की ग़लती करना लाज़िम नहीं है|

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