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Tuesday, October 19, 2010

भाग-३

इन कामों में सक्रिय भागीदारी करने की एक और महत्वपूर्ण वजह थी, वो ये कि गौरव जिस घर में पहुँचा था वहां पैसे खर्च करने वाले तो कई थे पर व्यवस्थायों को मूर्त रूप देने का सामर्थ्य किसी में थावहां काम बताने, करवाने के लिए बड़े तो थे, पर जिम्मेदारी से किसी काम को करने, देखने के लिए जो समझदारी चाहिए वो किसी में थी, और इसीलिए जब गौरव वहाँ पहुंचा तो काम अंजाम की तरफ बढ़ने शुरू हुए

रोज़ सूरज की पहली किरण के साथ वह शख्स अपने काम में लग जाता था जिसने शायद कभी ही सुबह जल्दी उठने की जहमत उठाई होस्कूल के दिनों की वेबसी छोड़ दें तो फिर गौरव ने कभी ये किया और अब जबकि वह ऐश्वार्यता की ओर अग्रसर था और एक प्रथिष्ठित कम्पनी में आदरपूर्ण पद पर विराजमान, तब तो उसे कतई ये करने की जरूरत थीलेकिन फिर भी दिल के किसी कोने से उठती आवाज़ उसे ये सब करने को मजबूर कर देती थीवह आश्चर्यचकित था कि वह क्यों अपने उसूल "मार दो या मरो" से भागा जा रहा हैक्यों वह उन लोगों की मदद कर रहा है जिन्होंने उसकी विषम परिस्थितियों में सहारा देना तो दूर कभी भी जलील करने का एक अवसर भी नहीं छोड़ा? क्या ये फिर से एक शोषणपूर्ण स्थिति नहीं? परन्तु इन प्रश्नों के उत्तर उसे मानसिक द्वंद्व में पहुंचाकर ही छोड़ते थेउसे कभी भी, कम से कम शादी की तैय्यारियाँ पूरी होने तक तो इन प्रश्नों के ऐसे उत्तर मिले जिससे वह उन जिम्मेदारियों को तार्किक और न्यायपूर्ण ढंग से पीठ दिखा सके। जो लोग हमेशा एक अलग सोच के साथ काम करना पसंद करते हैं; वे कई बार अपने भूत से ज्यादा अपनी तार्किक शक्ति और वर्तमान कि स्थितियों को महत्व दिया करते हैं। आज उसे लगा की उसके फैसले उसके अपने होने की कोई वजह है जो उसे अभी भी समझ में नहीं रही है।

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शादी का दिन आ गया। तय्यरियाँ पूरी हो चुकी थीं और सिर्फ मस्ती बाकी थी, सारे लोग, मेहमान जुड़ना शुरू हो गए थे, लेकिन गौरव, जिसने शादी की लगभग सारी तय्यरियाँ खुद ही और बखूबी की थीं, को आराम कम था। जिम्मेदारियों के साथ आराम नहीं चला करता। किसी भी चीज की ज़रुरत के लिए वो केंद्र बन चुका था। लोग उसके सलाह के बिना जल्दी काम भी नहीं करना पसंद कर रहे थे। इतनी तवज्जो किसी को भी खाशम -खास बना देती है, और ऐसा था भी।
हालाँकि पिछले २-३ दिन गौरव के लिए काफी थकानभरे बीते, मगर इन दिनों में उसकी दोस्ती और जान-पहचान कई लोगों से हुई। इनमें एक थी प्रिया। वैसे तो शादी के घर में अधिकतर लोगों का मुख्या काम सिर्फ मस्ती करना ही था, मगर प्रिया गौरव से इस कदर प्रभावित हुई की उसे दिल दे बैठी। फिर बाकि के दिन उसने अपनी सहेलियों के साथ नहीं, औरतों के बीच नहीं, प्रथाओं के निर्वाह की औपचारिकता पूरी करते नहीं बिताये; अपितु गौरव का ख्याल रखने में बिताये।
शेष फिर...

5 comments:

  1. जब हम निःस्वार्थ भाव से काम करते हैं तो इसका फल जरूर मिलता है।..कोई देखे या न देखे मौला देख रहा है।

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  2. आगे लिखेंगे कि दूसरों का ब्लॉग ही पढ़ते रहेंगै? धारावाहिका में इतना अंतराल पाठकों को निराश करता है।

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  3. When r u writing the next part?

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मैं जिंदा हूँ, मगर ज़िंदगी नहीं हूँ; मुझपे मरने की ग़लती करना लाज़िम नहीं है|

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