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Saturday, October 16, 2010

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आपकी ज़िन्दगी, आपके फैसले, क्या सचमुच आपके हैं? हो सकता है, अपनी महानता साबित करने का या किसी और को नीचा दिखने का उद्देश्य इसे "हाँ" में उत्तर वाला प्रश्न बना दें पर ये सदैव सच नहीं होता, या यूँ कहें की अधिकांश व्यक्तियों के फैसले उनके अपने नहीं होते

आपकी अपनी ज़िन्दगी पे फर्क पड़ता है कुछ उन जिंदगियों से जो हमेशा आपकी ज़िन्दगी के साथ चलती हैंइनके सुख दुःख में, किसी विशेष परिस्तिथि में या विषमता में; आप अपने फैसलों पर प्रत्यक्ष या परोक्ष असर पते हैंये आपकी ज़िन्दगी पे असर डालते हैंऐसा कोई भी जानने वाला रिश्तेदार या उनके सदृश होता है, पर अगर ऐसा नहीं होता तो वे रिश्ते जो खून के रिश्तों में गिने जाते हैं या आते हैं, मगर अपना असर नहीं छोड़ पाते, बेमानी कहे जा सकते हैं

इससे पृथक भी रिश्तों की परिभाषा है, ये वो बंधन हैं, जो जनम के साथ, या उसके बाद, कभी भी किसी से भी बंध सकते हैंसब कुछ निर्भर करता है आपके दिल दिमाग पर और फिर उसी प्रकार ये बंधन टूटते भी हैं, आपके दिल और दिमाग की निर्भरता परआपकी ज़िन्दगी की लता अगर किसी वृक्ष या किसी और आधार का सहारा पाकर आगे बढती है तो उस सहारे को आगे लेकर बढ़ना ज़रूरी तो है ही, उस सहारे का शुक्रगुजार होना भी परम-आवश्यक है

लेकिन अगर परिस्थितियां भिन्न हों और आपको पनपने का सहारा देने की बात तो दूभर, उलटे आपको सुखाने के ही प्रयास हो रहे हों, तो उस स्तिथि में अपने को अमरबेल बनाकर, अपना पोषण करने में क्या हर्ज़ है? दूसरों की चिंता का तो प्रश्न ही नहीं उठता, उसे ख़तम करने में भी कोई हर्ज़ नहीं

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गौरव गोपाल खन्ना... । ऐश्वर्यता उसके अंग-अंग से टपकती थीवह खुश-मिजाज था, शरीर से सबल रूप और गुण दोनों में ही औसतअगर वह इतना अच्छा था की लोग उसे देखते ही उसकी तारीफ करने को मजबूर हो जायें तो इतना बुरा भी नहीं था की उसके पीठ पीछे लोग उसकी बुराई करेंउसे गुणी इसलिए नहीं कहा जा सकता, क्योंकि पैसे के प्रदर्शन और किताबी पढाई के अलावा किसी और क्षेत्र में कभी झंडे नहीं गाड़े, अन्यथा दिमाग का वो कम धनी नहीं था


(जारी...)

2 comments:

  1. @Devendra Ji:
    lagta nahi tha ki blog jagat main bhi logon ke pas kahaniyan padhne ki fursat hogi. phir anand ki yaden padha.
    ek achhi rachna hai, hamesha waqt nahi milta magar jab bhi milta hai, ek bar jahan tak padha hai wahin se shuru kar deta hoon.

    rachna kashi ki galiyon se kahan tak jayegi ye to ane wala waqt hi batayega magar abhi tak ka pravah jis tarah se bandhe hue hai wo kabil-e-tarif hai..

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मैं जिंदा हूँ, मगर ज़िंदगी नहीं हूँ; मुझपे मरने की ग़लती करना लाज़िम नहीं है|

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