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Monday, April 19, 2010

My First Lines

दस्तक
एक दस्तक हर बार जगाती है आस;
फ़ना होती है फिर मुरझाया चेहरा देकर|
फिर खुला दरवाजा, मेरी आस जागी;
और डूब गयी आने वाले का चेहरा देखकर|
वे आते हैं, बुलाते हैं, नाम से सबको;
कोई पुकारता नहीं क्यों, मेरा नाम लेकर?
इन्तिहाँ हो गयी, इस इम्तेहान में;
टूट गया हूँ मैं इंतज़ार देखकर|


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About Me

मैं जिंदा हूँ, मगर ज़िंदगी नहीं हूँ; मुझपे मरने की ग़लती करना लाज़िम नहीं है|

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