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Sunday, June 6, 2010

पैगाम..

वो अपनी ही अदाओं के दीवाने हैं,
इसलिए अपने ही अक्स पर शरमाते हैं, मुस्कुराते हैं|
बोलने को साथ में अल्फाज़ न ही हों मगर,
जाने किस फितूर में बातें किये जाते हैं|

उनको फिक्र नहीं, मगर मेरे महबूब हैं,
इसलिए हम एकटक उन्हें देखे जाते हैं,
मगर घबराते हैं फिर जाने क्यों,
और अपनी नज़र आप ही झुकाते हैं|

वो तो काजल लगाते हैं खुद को,
और नज़र लगने से बचाते हैं।
हमें उनके अक्स से भी मगर प्यार है उतना ही,
इसलिए हम शीशे को भी काजल लगाते हैं|

6 comments:

  1. "हम शीशे को भी काजल लगाते हैं"
    खूब कही

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  2. kya baat kahi hai seeshe ko kajal lagane ki

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  3. ap sabhi ko dhanyawad..
    asha hai apka sahyog aur subhkamnayein mujhe yun hi likhne ke liye prerit karta rahega..

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  4. Wahhh .... Sir aap kamaal likhte hain ...

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  5. dhanyawad shekhar sir

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  6. हिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
    कृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपनी बहुमूल्य टिप्पणियां देनें का कष्ट करें

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About Me

मैं जिंदा हूँ, मगर ज़िंदगी नहीं हूँ; मुझपे मरने की ग़लती करना लाज़िम नहीं है|

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