वो अपनी ही अदाओं के दीवाने हैं,
इसलिए अपने ही अक्स पर शरमाते हैं, मुस्कुराते हैं|
बोलने को साथ में अल्फाज़ न ही हों मगर,
जाने किस फितूर में बातें किये जाते हैं|
उनको फिक्र नहीं, मगर मेरे महबूब हैं,
इसलिए हम एकटक उन्हें देखे जाते हैं,
मगर घबराते हैं फिर जाने क्यों,
और अपनी नज़र आप ही झुकाते हैं|
वो तो काजल लगाते हैं खुद को,
और नज़र लगने से बचाते हैं।
हमें उनके अक्स से भी मगर प्यार है उतना ही,
इसलिए हम शीशे को भी काजल लगाते हैं|
"हम शीशे को भी काजल लगाते हैं"
ReplyDeleteखूब कही
kya baat kahi hai seeshe ko kajal lagane ki
ReplyDeleteap sabhi ko dhanyawad..
ReplyDeleteasha hai apka sahyog aur subhkamnayein mujhe yun hi likhne ke liye prerit karta rahega..
Wahhh .... Sir aap kamaal likhte hain ...
ReplyDeletedhanyawad shekhar sir
ReplyDeleteहिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
ReplyDeleteकृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपनी बहुमूल्य टिप्पणियां देनें का कष्ट करें